रक्षा क्षेत्र में ऐतिहासिक बदलाव: 2025 बना आत्मनिर्भर और आधुनिक भारत की सैन्य शक्ति का निर्णायक वर्ष
नई दिल्ली। रक्षा मंत्रालय (MoD) के लिए वर्ष 2025 बेहद महत्वपूर्ण और ऐतिहासिक रहा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सरकार ने देश को मजबूत, सुरक्षित, आत्मनिर्भर और समावेशी बनाने के लक्ष्य की दिशा में बड़ी उपलब्धियां हासिल कीं। रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता बढ़ाने और सशस्त्र बलों को आधुनिक बनाने के प्रयासों को नई गति मिली। इसके परिणामस्वरूप भारत ने अब तक का सबसे अधिक रक्षा उत्पादन किया और रक्षा निर्यात भी रिकॉर्ड स्तर पर पहुंचा।
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के नेतृत्व में मंत्रालय ने सीमावर्ती इलाकों में बुनियादी ढांचे को मजबूत करने, महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने और पूर्व सैनिकों के कल्याण पर विशेष ध्यान दिया। इन सभी क्षेत्रों में तेज़ी और प्रभावी ढंग से काम हुआ। वर्ष 2025 की प्रमुख उपलब्धियां इस प्रकार हैं:
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में ‘विकसित भारत @2047’ के लक्ष्य को आगे बढ़ाते हुए केंद्र सरकार ने वित्त वर्ष 2025-26 के केंद्रीय बजट में रक्षा मंत्रालय (MoD) के लिए 6,81,210.27 करोड़ रुपये का प्रावधान किया है। यह बजट वित्त वर्ष 2024-25 के बजटीय अनुमान से 9.53 प्रतिशत अधिक है और कुल केंद्रीय बजट का 13.45 प्रतिशत हिस्सा बनता है, जो सभी मंत्रालयों में सर्वाधिक है।
सरकार ने वर्ष 2025-26 को ‘सुधार वर्ष’ के रूप में मनाने का फैसला किया है। इसका उद्देश्य रक्षा खरीद प्रक्रियाओं को अधिक सरल, पारदर्शी और प्रभावी बनाना है। इस पहल के माध्यम से सशस्त्र बलों के आधुनिकीकरण को गति मिलेगी और उपलब्ध संसाधनों का बेहतर व अधिकतम उपयोग सुनिश्चित किया जा सकेगा। इससे रक्षा क्षेत्र में कार्यकुशलता बढ़ेगी और देश की सुरक्षा क्षमताएं और मजबूत होंगी। साथ ही रक्षा उत्पादन को 3 लाख करोड़ रुपये तक बढ़ाना और 2029 तक 50,000 करोड़ रुपये के निर्यात लक्ष्य को प्राप्त करना है।
रक्षा सेवाओं के आधुनिकीकरण के लिए सरकार ने पूंजीगत परिव्यय के तहत 1,80,000 करोड़ रुपये का प्रावधान किया है, जो पिछले वर्ष से 4.65 प्रतिशत अधिक है।
इसमें से 1,48,722.80 करोड़ रुपये सशस्त्र बलों के लिए नए हथियार, उपकरण और तकनीक खरीदने पर खर्च किए जाएंगे, जबकि 31,277.20 करोड़ रुपये अनुसंधान, विकास और बुनियादी ढांचे के निर्माण के लिए रखे गए हैं।
‘आत्मनिर्भर भारत’ अभियान के तहत आधुनिकीकरण बजट का 75 प्रतिशत हिस्सा घरेलू स्रोतों से खरीद के लिए तय किया गया है। इसमें से 25 प्रतिशत घरेलू निजी उद्योगों से लिया जाएगा। इससे रक्षा उत्पादन, रोजगार के अवसर और तकनीकी विकास को बढ़ावा मिलेगा।
सशस्त्र बलों के वेतन, भत्तों और रखरखाव के लिए 3,11,732.30 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं, जो पिछले वर्ष की तुलना में 10.24 प्रतिशत अधिक है।
इसमें से 1,14,415.50 करोड़ रुपये गैर-वेतन खर्च के लिए रखे गए हैं, जिससे ईंधन, राशन, उपकरणों के रखरखाव और सेना की परिचालन तैयारियों को मजबूत किया जा सकेगा।
रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) का बजट बढ़ाकर 26,816.82 करोड़ रुपये कर दिया गया है, जो 12.41 प्रतिशत की वृद्धि है।
इसके अलावा, रक्षा क्षेत्र में नवाचार को प्रोत्साहित करने के लिए आईडेक्स योजना के तहत 449.62 करोड़ रुपये दिए गए हैं, जिससे स्टार्ट-अप और नई तकनीकों को बढ़ावा मिलेगा।
पूर्व सैनिकों के कल्याण के लिए ईसीएचएस योजना के तहत 8,317 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है।
रक्षा पेंशन के लिए 1.61 लाख करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं, जो पिछले वर्ष से 13.87 प्रतिशत अधिक है। इससे लगभग 34 लाख पेंशनभोगियों को लाभ मिलेगा।
भारतीय तटरक्षक बल के लिए 9,676.70 करोड़ रुपये का बजट रखा गया है, जिसमें पूंजीगत खर्च में 43 प्रतिशत की बढ़ोतरी शामिल है।
वहीं, सीमा सड़क संगठन (बीआरओ) को 7,146.50 करोड़ रुपये दिए गए हैं, जिससे सीमावर्ती इलाकों में सड़क, सुरंग और पुल निर्माण कार्य तेजी से पूरे किए जा सकेंगे।
उत्तर प्रदेश और तमिलनाडु में दो समर्पित रक्षा औद्योगिक गलियारे स्थापित किए गए हैं। इन गलियारों ने 8,658 करोड़ रुपए से अधिक का निवेश आकर्षित किया है। फरवरी 2025 तक 53,439 करोड़ रुपए अनुमानित निवेश क्षमता वाले 253 समझौता ज्ञापनों पर हस्ताक्षर किए हैं। दोनों राज्यों में 11 ईकायों में फैले ये केंद्र भारत को रक्षा विनिर्माण महाशक्ति बनाने के लिए आवश्यक बुनियादी ढांचा और प्रोत्साहन प्रदान कर रहे हैं।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में पिछले दशक में आरंभ किए गए नीतिगत सुधारों से पहले भारत का रक्षा क्षेत्र अनेक संरचनात्मक चुनौतियों से जूझ रहा था। रक्षा खरीद प्रक्रियाएं अत्यंत धीमी थीं, जिसके कारण आवश्यक क्षमताओं में गंभीर परेशानियां उत्पन्न हो रही थीं। अत्यधिक आयात निर्भरता ने न केवल देश के विदेशी मुद्रा भंडार पर दबाव बढ़ाया, बल्कि वैश्विक अस्थिरता के समय भारत की सामरिक कमजोरियों को भी उजागर किया। इससे पहले, प्रतिबंधात्मक नीतियों, रक्षा सार्वजनिक उपक्रमों के वर्चस्व और अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी तक सीमित पहुंच के कारण निजी क्षेत्र की भागीदारी नगण्य थी। परिणामस्वरूप, रक्षा निर्यात का स्तर अत्यंत निम्न रहा था।
सरकार ने आत्मनिर्भर भारत के दृष्टिकोण को आगे बढ़ाते हुए एक आत्मनिर्भर और विश्व स्तर पर प्रतिस्पर्धी रक्षा उद्योग के निर्माण हेतु कई सुधार शुरू किए हैं। इनके प्रमुख उद्देश्य इस प्रकार हैं:
सुव्यवस्थित रक्षा अधिग्रहण प्रक्रिया (डीएपी) के माध्यम से खरीद प्रक्रियाओं में गति लाना, जिससे आवश्यक स्वीकृति प्राप्त होने पर रक्षा अधिग्रहण परिषद (डीएसी) द्वारा अधिग्रहण को शीघ्र अनुमोदन मिल सके।
सकारात्मक स्वदेशीकरण सूची के माध्यम से देश में रक्षा उत्पादन को प्रोत्साहित किया गया है। साथ ही, 74% तक स्वचालित मार्ग और 100% तक सरकारी अनुमोदन मार्ग के तहत एफडीआई मानदंडों में उदारता लाई गई है। इसके अतिरिक्त, 1 लाख करोड़ रुपये की अनुसंधान, विकास एवं नवाचार (आरडीआई) योजना के माध्यम से डीपीएसयू, निजी क्षेत्र, एमएसएमई और स्टार्टअप्स के बीच सहयोग को सुदृढ़ किया जा रहा है, जिससे रक्षा प्रौद्योगिकी और आत्मनिर्भरता को नई गति मिल रही है।
सरलीकृत लाइसेंसिंग के साथ रक्षा निर्यात को बढ़ावा देना, जिसमें बुलेटप्रूफ जैकेट, डोर्नियर विमान, चेतक हेलीकॉप्टर, तेज गति के इंटरसेप्टर नौकाएं और हल्के वजन वाले टारपीडो जैसे प्लेटफॉर्म शामिल हैं।
साल 2025 को ‘सुधारों का वर्ष’ घोषित किया गया है। इन गतिविधियों का उद्देश्य सशस्त्र बलों को तकनीकी रूप से उन्नत, युद्ध के लिए तैयार बल में बदलना है, जो बहु-डोमेन एकीकृत संचालन में सक्षम हो। साथ ही रक्षा उत्पादन को 3 लाख करोड़ रुपये तक बढ़ाना और 2029 तक 50,000 करोड़ रुपये के निर्यात लक्ष्य को प्राप्त करना है।
रक्षा अधिग्रहण प्रक्रिया (डीएपी) में सुधार
भारत सरकार ने आत्मनिर्भर देश के दृष्टिकोण को आगे बढ़ाते हुए रक्षा खरीद पारिस्थितिकी तंत्र में बदलाव लाने के लिए कई ऐतिहासिक सुधार किए हैं। रक्षा अधिग्रहण प्रक्रिया (डीएपी) 2020 और रक्षा खरीद नियमावली (डीपीएम) 2025 जैसे दोनों ढांचे मिलकर इस परिवर्तन की मेरुदंड के रूप में कार्य कर रहे हैं, जो पूंजीगत तथा राजस्व खरीद दोनों में गति, पारदर्शिता, नवाचार एवं आत्मनिर्भरता सुनिश्चित करते हैं।
रक्षा अधिग्रहण प्रक्रिया (डीएपी) 2020 एक परिवर्तनकारी नीतिगत ढांचा है, जो वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी घरेलू रक्षा उद्योग के विकास को प्रोत्साहित करते हुए अधिग्रहण प्रक्रिया के आधुनिकीकरण के लिए एक व्यापक नियम-पुस्तिका तथा रणनीतिक रोडमैप के रूप में कार्य करती है। यह नीति देरी तथा आयात पर रक्षा अधिग्रहण प्रक्रिया (डीएपी) 2020 एक परिवर्तनकारी नीतिगत ढांचा है, जो वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी घरेलू रक्षा उद्योग के विकास को प्रोत्साहित करते हुए अधिग्रहण प्रक्रिया के आधुनिकीकरण के लिए एक व्यापक नियम-पुस्तिका तथा रणनीतिक रोडमैप के रूप में कार्य करती है। यह नीति देरी तथा आयात पर अत्यधिक निर्भरता जैसी पुरानी चुनौतियों को दूर करने हेतु तैयार की गई है और अधिग्रहण के प्रत्येक चरण में स्पष्टता, पारदर्शिता एवं स्वदेशी नवाचार को केंद्र में रखती है।
भारत के रणनीतिक सहयोग और मजबूत नीतिगत फैसले केवल सुधार तक सीमित नहीं हैं, बल्कि वे रक्षा आत्मनिर्भरता और तकनीकी स्वतंत्रता की दिशा में एक नए दौर की नींव रख रहे हैं। घरेलू रक्षा उत्पादन और निर्यात में लगातार बढ़ोतरी, साथ ही आधुनिक तकनीकों का तेजी से औद्योगिक ढांचे में शामिल होना, इस क्षेत्र में भारत की प्रगति को साफ तौर पर दिखाता है। आज भारत का एक वैश्विक रक्षा विनिर्माण केंद्र बनने का सपना अब दूर नहीं रहा, बल्कि धीरे-धीरे हकीकत बनता जा रहा है।
स्वदेशी रक्षा उत्पादन के मूल्य में अब तक की सबसे बड़ी वृद्धि दर्ज की गई है, जो ‘आत्मनिर्भर भारत’ अभियान, स्वदेशीकरण को बढ़ावा देने वाली नीतियों और निजी क्षेत्र के साथ मजबूत साझेदारी का परिणाम है। ‘मेक इन इंडिया’ पर विशेष जोर, मजबूत अनुसंधान एवं विकास व्यवस्था और उभरते स्टार्ट-अप इकोसिस्टम ने इस बदलाव को और तेज किया है।
रक्षा औद्योगिक गलियारों की स्थापना से लेकर रक्षा निर्यात को बढ़ावा देने तक, सरकार के हर कदम का उद्देश्य आयात पर निर्भरता कम करना और देश की स्वदेशी क्षमताओं को मजबूत बनाना है। ये सभी प्रयास मिलकर एक ऐसा आधुनिक और तकनीक-आधारित रक्षा तंत्र तैयार कर रहे हैं, जो न केवल भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा को मजबूत करता है, बल्कि देश को रक्षा निर्माण और नवाचार के क्षेत्र में एक भरोसेमंद वैश्विक भागीदार के रूप में स्थापित कर रहा है।


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