भारत में जैव-चिकित्सा अनुसंधान को नई दिशा, 1,500 करोड़ रुपये की लागत से शुरू हुआ अनुसंधान करियर कार्यक्रम का तीसरा चरण
नई दिल्ली। केंद्र सरकार ने जैव-चिकित्सा अनुसंधान करियर कार्यक्रम के तीसरे चरण को मंजूरी दे दी है। यह कार्यक्रम 2025-26 से 2030-31 तक चलेगा और 2037-38 तक विस्तारित सेवा अवधि में लागू रहेगा। इस कार्यक्रम का उद्देश्य देश में जैव-चिकित्सा विज्ञान, क्लिनिकल और जनस्वास्थ्य अनुसंधान के क्षेत्र में विश्व स्तरीय अनुसंधान इकोसिस्टम तैयार करना है। इसके तहत कुल 1,500 करोड़ रुपये का खर्च किया जाएगा, जिसमें भारत सरकार के जैव-प्रौद्योगिकी विभाग (DBT) की ओर से 1,000 करोड़ रुपये और ब्रिटेन के वेलकम ट्रस्ट की ओर से 500 करोड़ रुपये का निवेश किया जाएगा।
इस कार्यक्रम के तहत 2,000 से अधिक शोधकर्ताओं को प्रशिक्षित करने, उच्च प्रभाव वाले प्रकाशन तैयार करने, पेटेंट योग्य खोजों को बढ़ावा देने और 25-30% परियोजनाओं को तकनीकी तैयारी स्तर (TRL-4) या उससे ऊपर तक पहुंचाने का लक्ष्य रखा गया है। इसके अलावा, महिलाओं वैज्ञानिकों के लिए 10-15% अधिक सहायता देने की योजना है ताकि वैज्ञानिक अनुसंधान में समावेशिता को बढ़ावा दिया जा सके। यह कार्यक्रम आत्मनिर्भर भारत, स्वस्थ भारत, स्टार्टअप इंडिया और मेक इन इंडिया जैसे प्रमुख राष्ट्रीय मिशनों से जुड़ा हुआ है। बता दें कि जैव-प्रौद्योगिकी विभाग ने 2008 में वेलकम ट्रस्ट (यूके) के साथ मिलकर “जैव-चिकित्सा अनुसंधान करियर कार्यक्रम” की शुरुआत की थी। इसके पहले दो चरणों में 2,388 करोड़ रुपये का निवेश किया गया और 721 शोध अनुदान प्रदान किए गए। कार्यक्रम के दूसरे चरण में भारत और विदेशों के 90 वैज्ञानिकों को अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय स्तर पर सम्मान प्राप्त हुआ था।
तीसरे चरण में ‘अर्ली करियर’ और ‘इंटरमीडिएट फेलोशिप’, सहयोगात्मक अनुदान कार्यक्रम और अनुसंधान प्रबंधन कार्यक्रम जैसी योजनाओं के माध्यम से विभिन्न स्तरों पर वैज्ञानिकों को सहायता दी जाएगी। इसके तहत नए अनुसंधान फेलोशिप, सहयोगात्मक अनुदान और क्षमता-विकास की पहलें की जाएंगी। यह कार्यक्रम न केवल वैज्ञानिक अनुसंधान को मजबूत करेगा बल्कि अनुसंधान प्रबंधन, विज्ञान प्रशासन और नियामक मामलों में भी प्रशिक्षण प्रदान करेगा। “जैव-चिकित्सा अनुसंधान करियर कार्यक्रम” का प्रभाव पहले ही कई क्षेत्रों में दिख चुका है। कोविड-19 महामारी के दौरान इस कार्यक्रम के अंतर्गत 70 से अधिक अनुसंधान परियोजनाओं को वित्तपोषित किया गया, जिसमें 10 वैक्सीन उम्मीदवार, 34 डायग्नोस्टिक उपकरण और 10 उपचार विधियां विकसित की गईं। डीबीटी-नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ बायोमेडिकल जीनोमिक्स (NIBMG) ने विश्व का पहला मौखिक कैंसर जीनोमिक वैरिएंट डेटाबेस (dbGENVOC) विकसित किया, जिसमें 2.4 करोड़ से अधिक वैरिएंट शामिल हैं।
इसके साथ ही, विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के सहयोग से ‘राष्ट्रीय एंटीमाइक्रोबियल रेजिस्टेंस मिशन’ भी शुरू किया गया है ताकि दवा प्रतिरोधक संक्रमणों से निपटने के लिए अनुसंधान एवं विकास को बढ़ावा दिया जा सके। भारत में बायो-रिपॉजिटरी और क्लिनिकल ट्रायल नेटवर्क भी स्थापित किए गए हैं जो अनुसंधान को प्रयोगशाला से रोगियों तक पहुंचाने में सहायक हैं। महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने के लिए ‘बायोकेयर’, ‘जानकी अम्माल अवार्ड’ और ‘वुमन इन इनोवेशन एंड एंटरप्रेन्योरशिप रिसर्च जैसे कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं। साथ ही, ‘विमेन लीडर्स इन ग्लोबल हेल्थ’ सम्मेलन के माध्यम से महिला वैज्ञानिकों को वैश्विक मंच पर प्रोत्साहित किया जा रहा है।
भारत का जैव-चिकित्सा अनुसंधान मानव जीनोमिक्स, संक्रामक रोग जीवविज्ञान, वैक्सीन, डायग्नोस्टिक्स, थेराप्यूटिक्स, बायोमेडिकल इंजीनियरिंग, स्टेम सेल रिसर्च, मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य, समुद्री जैव प्रौद्योगिकी और जनस्वास्थ्य पोषण जैसे क्षेत्रों में केंद्रित है। इन पहलों के माध्यम से भारत ने न केवल सस्ती और स्वदेशी स्वास्थ्य तकनीक विकसित की है, बल्कि वैश्विक स्वास्थ्य नवाचार में अग्रणी भूमिका भी निभाई है। यह कार्यक्रम भारत को 2047 तक ‘विकसित भारत’ बनाने के लक्ष्य की दिशा में आगे बढ़ाने का एक बड़ा कदम है। जैव-चिकित्सा अनुसंधान अब केवल प्रयोगशालाओं तक सीमित नहीं रहा, बल्कि यह भारत के हर नागरिक तक सस्ती, सुलभ और नवाचारी स्वास्थ्य सेवाएं पहुंचाने का माध्यम बन गया है।
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