प्रशिक्षण से स्वरोजगार तक: आत्मनिर्भर बन रहीं ग्रामीण महिलाएं और युवा
रायपुर,03 जून 2025 हमने कभी नहीं सोचा था कि गांव की महिलाएं भी राजमिस्त्री बन सकती हैं, यह कहते हुए ग्राम तुर्काडीह की ममता यादव की आंखों में आत्मविश्वास की चमक दिखाई देती है। ममता उन 22 महिलाओं में शामिल हैं जो इन दिनों बिलासपुर के कोनी स्थित एसबीआई ग्रामीण स्वरोजगार प्रशिक्षण संस्थान आरसेटी में राजमिस्त्री प्रशिक्षण में भाग ले रही हैं। अब वे सिर्फ दीवारें नहीं बना रहीं, बल्कि अपने भविष्य की नींव भी मजबूत कर रही हैं।
ग्रामीण क्षेत्रों के बेरोजगार युवाओं और महिलाओं को व्यावसायिक दक्षता प्रदान कर आत्मनिर्भर बनाने का कार्य यह संस्थान बखूबी कर रहा है। खासकर बीपीएल परिवारों के लिए यह एक वरदान साबित हो रहा है, जहां निःशुल्क आवास, भोजन और प्रशिक्षण की सुविधा मिल रही है। प्रशिक्षण प्राप्त महिलाएं मुख्यमंत्री श्री विष्णु देव साय का आभार जताते हुए कहती हैं कि सरकार की योजनाओं से अब ग्रामीण महिलाएं भी आगे बढ़ रही हैं। यह बदलाव केवल कौशल तक सीमित नहीं है, बल्कि महिलाओं की सोच, आत्मनिर्भरता और सामाजिक स्थिति में भी सकारात्मक परिवर्तन ला रहा है।
ग्राम मानिकपुरी की शांता मरावी बताती हैं कि उन्होंने स्व सहायता समूह से प्रशिक्षण की जानकारी मिलने पर तुरंत भाग लिया। वे कहती हैं, यहां रहने और खाने की उत्तम व्यवस्था है और वह भी पूरी तरह निःशुल्क। इससे हम बिना चिंता के प्रशिक्षण पर ध्यान दे पा रहे हैं। प्रशिक्षण पूरा करने के बाद वे अपने गांव में प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत निर्माण कार्य में काम कर आजीविका कमाना चाहती हैं।
संस्थान के निदेशक नरेंद्र साहू ने बताया कि हर वर्ष 1000 से अधिक युवाओं और महिलाओं को यहां प्रशिक्षित किया जाता है। संस्थान का मुख्य उद्देश्य बीपीएल परिवारों को व्यावसायिक रूप से दक्ष बनाना है। प्रशिक्षण पूरा होने के बाद उन्हें बैंकों से जोड़ा जाता है, ताकि वे स्वरोजगार के लिए ऋण प्राप्त कर सकें। संस्थान विभिन्न ट्रेडों जैसे- दर्जी, ब्यूटी पार्लर, मशरूम उत्पादन, पशुपालन, जैविक खेती, फोटोग्राफी, वीडियोग्राफी, बेकिंग, कुकिंग, बागवानी, ज्वेलरी मेकिंग और मोबाइल रिपेयरिंग में प्रशिक्षण देता है।
यह संस्थान आत्मनिर्भर भारत अभियान के उद्देश्य को साकार करता हुआ न केवल व्यक्तिगत बल्कि सामाजिक बदलाव का वाहक बन रहा है। महिलाएं, जो कभी घर की चारदीवारी तक सीमित थीं, अब निर्माण कार्य में सक्रिय भागीदारी निभा रही हैं। इससे न सिर्फ उनका आत्मविश्वास बढ़ा है, बल्कि गांवों में महिलाओं के प्रति दृष्टिकोण में भी सकारात्मक परिवर्तन आया है।
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